
"गुरु पूर्णिमा पर्व पर शांतिकुंज में श्रद्धा, साधना और समर्पण का दिव्य संगम" पूज्य गुरुदेव-माताजी की अमृतवाणी से हुआ शुभारंभ, मंत्रदीक्षा व वैदिक पर्व पूजन सम्पन्न
मनुष्य जन्म तो सहज प्राप्त होता है, किंतु मनुष्यता कठिन प्रयत्नों से प्राप्त करनी पड़ती है। वो मनुष्यता गुरु कृपा से मिलती है। भक्त को भगवान से गुरु मिलाता है। मुक्ति का मार्ग गुरु बताता है। उन सद्गुरु को स्मरण करने का दिन है "पावन गुरु पूर्णिमा पर्व"। आषाढ़ पूर्णिमा संवत 2082 दिनांक 10 जुलाई 2025 के पावन गुरु पूर्णिमा पर्व की शुरुआत दिव्य, जाग्रत और चैतन्य तीर्थ शांतिकुंज में वेदमूर्ति तपोनिष्ठ युगदृष्टा पूज्य गुरुदेव एवं आद्यशक्ति जगत जननी परम वंदनीया माताजी की अमृतवाणी से हुई। उसके पश्चात शांतिकुंज के सभागार में बैठे हजारों लोगों को गायत्री परिवार प्रमुखद्वय श्रद्धेय डॉ साहब एवं श्रद्धेया जीजी के द्वारा मंत्र दीक्षा दी गई। मंत्र दीक्षा के पश्चात श्रद्धेयद्वय ने पर्व पूजन का क्रम वैदिक मंत्रों के साथ संपन्न किया। पर्व पूजन के बाद गायत्री तीर्थ में गुरु पर्व मनाने आए हजारों परिजनों को श्रद्धेय डॉ साहब ने संबोधित करते हुए कहा कि आज का जो गायत्री परिवार और उसका स्वरूप है उसके पीछे लाखों लाख शिष्यों का त्याग और तप है। परम पूज्य गुरुदेव से जुड़ने के बाद उनके सपनों को साकार करने के लिए लाखों परिजनों ने अपना सर्वस्व गुरु के चरणों में अर्पित किया। उसी समर्पण का परिणाम है आज का विराट गायत्री परिवार।
श्रद्धेया जीजी ने उपस्थित साधकों को अपने संदेश में कहा कि गुरु के प्रति शिष्य की श्रद्धा ऐसे चमत्कार करती है कि क्या कहने। एकलव्य की मिट्टी के गुरु द्रोणाचार्य के प्रति श्रद्धा भक्ति ने वो कर दिखाया जो अर्जुन भी न कर सके। आज का गुरु पूर्णिमा पर्व हम शिष्यों का परम पूज्य गुरुदेव के प्रति श्रद्धा समर्पण का पर्व है। गुरुदेव के प्रति हजारों साधकों की श्रद्धा और समर्पण से ये हमारा ये विशाल परिवार, गायत्री परिवार बना है।
तुम हमारे थे दयानिधि, तुम हमारे हो
तुम हमारे ही रहोगे, हे परम गुरुदेव।।
जैसे मर्मस्पर्शी भजनों से संगीत विभाग के संगीतज्ञों ने सुंदर भाव प्रस्तुत किया।